Thursday 2 August 2012

अहसास !!

जिन्दगी इतनी
मुश्किल
तो नहीं है
फिर भी
कभी डरती है
अपने
इरादों से

आज जो है
कल होगा
या नहीं
जिसे
अपना कहूँ
वो कल
खोएगा तो नहीं

अकेली हूँ
पर
शिकायत नहीं है
तुझसे
बस डर है
कि
मेरी वजह से
अकेला
ना रह जाए
तू सबसे

कितनी
आवाजें हैं
चारों तरफ
मेरे
तेरी आवाज
इसमें
कहीं खोए
तो नहीं

कैसा ये
अहसास है
खोया है
या
पाया है
इस
कशमकश में
जीना भी
क्या जीना है ...





Friday 23 July 2010

क्यों ??

क्यूं होता है अँधेरा
काला गुमसुम सा
लोग उससे कतराते हैं
आता वोह
फिर भी पीछे है
भाग क्यों नहीं जाता कहीं

जा नहीं सकते
हम भी कहीं
उससे भागकर
उदासी
घेरे रहती है
मन को
जो चाहो
वो सब हो नहीं पाता

ज़िन्दगी लगती है
एक समझौता

क्यों जीते हैं इसे

कहीं कोई होता नहीं होगा
कोई अपना
नहीं
चाहिए भी नहीं

मूर्ति बना देता भगवान्
जी लेते उसे भी
कम से कम
निर्जीव हूँ कुछ नहीं होगा मुझे
इसका विश्वास तो होता

कोई क्यों करे
मुझसे प्यार
क्यों चाहे मुझे
मिट्टी हूँ
किसी काम की नहीं हूँ
फेंक देता तो
दर्द ना होता



आंसूओं को भी
बनाया भगवान् ने
ऐसी लगती है
ज़िन्दगी
आंसू को गले नहीं लगाते
वो बहने के लिए हैं
तुमने गले लगाया
यह अहसान है


ज़िन्दगी के
छोटे छोटे पल
ज़िन्दगी से भारी होंगे
यह सोचा ना था

Monday 7 April 2008

परी ......

वो आई थी...

मैंने उसे बुलाया था । उसे बुलाने के लिए कई दिनों से बेचैन था ..
सोचा कि कैसे बुलाऊँ .. साफ़ साफ़ कह दूँ कि मेरे घर आना .. या फूल दे कर निमंत्रित करुँ ।
फ़िर रास्ते में एक कार्ड की दुकान दिखाई दे गई .. उस में ढूंडा तो एक मन का सा लगने वाला कार्ड मिला तो सोचा ये दूँगा और लिखूंगा कि शायरी की तरह कि तुम मेरे घर आना । कितना खुश हुआ कि चलो अब उसे बुलाना उतना कठिन नहीं रहा .. घर लाया अपने हांथों से रंगीन कलम से खुशबू के साथ हलके हलके मैंने उस कार्ड में उसका नाम लिखा .. और फूलों की महक के साथ उसे बंद किया कि जब वो उसे खोले तो उसे खुशबू आए और मेरा निमंत्रण स्वीकार कर ले .

फ़िर बारी आई डाकिये के ठप्पे कि जो वो उस कार्ड पर जोर से मारेगा फ़िर उस तक भेजेगा ... दिल रो पड़ा पर क्या करता ये तो होना ही था ..

उसे मिल गया होगा ab तक . अब उसके आने का इंतजार शुरू हुआ .. उसके स्वागत की तैयारियां करने लगा .. मेरा घर अब मेरा घर नहीं रह गया था वो किसी के आने का इंतजार करने लगा था .. कमरे का एक एक कोना उसी की पसंद के सामानों से भर दिया था .. हर चीज में महक थी कि वो आयेगी .. यहाँ बैठेगी .. मेरे घर को देखेगी .. उसके लिए हर चीज बदल दी मैंने ..

आख़िर वो वक्त आया .. सुबह से मैं तैय्यारी में था .. उसे देने के लिए उपहार लाया था उसे भी सजा कर रखा था, छुपा कर .. कि उसे surprise दूँगा ..

घंटी बजी .... वो आई .. उसकी आँखें चमक रही थी .. गाल जैसे मुलायम रुई का गोला ..उसे देख कर मैं सुब भूल गया .. वो अन्दर आई उसने मेरा घर देखा मुझे भी देखने की कोशिश की उसने पर ज्यादा देर तक मुझे देखना उसके लिए बोरिंग हो गया था ... जब तक वो रही मैं खो गया ... सब कुछ भूल गया ... वो एक घंटा एक मिनट में ख़तम हो गया ... अब जाने की बरी आई ... मैंने उसे उसका उपहार दिया ... उसने बड़ी खुशी से उसे अपनी एक उंगली से पकड़ा क्योंकि पूरे हांथों से पकड़ने की अभी उसकी उमर नही थी ...

क्यों ??????? सोचो सोचो .....

वो तो premp में लेटी थी, अभी कुछ महीनों की ही तो थी ... गुलाबी ड्रेस में चमकती हुई परी की तरह ... उसे छूना भी लगता था कि जैसे कुछ बिगड़ न जाए ... उसकी आँखों ने टिमटिमाते तारों की तरह मेरे घर को रोशन कर दिया था ....

मेरे बेटे के जन्मदिन पर मैंने उसे बुलाया था ... वो हमारे घर की पहली छोटी सी मेहमान थी ....